
🔹 लेखक परिचय: रवींद्रनाथ ठाकुर (Tagore)
- जन्म: 7 मई 1861, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)
- मृत्यु: 7 अगस्त 1941
- परिचय:
रवींद्रनाथ ठाकुर, जिन्हें आमतौर पर रवींद्रनाथ टैगोर के नाम से जाना जाता है, एक महान कवि, लेखक, संगीतकार, चित्रकार और शिक्षाशास्त्री थे।
उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था – यह सम्मान पाने वाले वे पहले एशियाई व्यक्ति थे।
उन्होंने शांतिनिकेतन की स्थापना की, जो भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक नई सोच का प्रतीक बना। - प्रमुख कृतियाँ:
- गीतांजलि
- गोरा
- घरे-बाइरे
- रवींद्र संगीत (हजारों गीतों की रचना)
🔹 अध्याय का नाम: शिक्षा में हेर-फेर
लेखक: रवींद्रनाथ ठाकुर
🔸 शिक्षा में हेर-फेर अध्याय का सारांश (Summary in Hindi):
यह निबंध भारतीय शिक्षा व्यवस्था की खामियों और उसमें आवश्यक सुधारों को लेकर लिखा गया है। लेखक रवींद्रनाथ ठाकुर बताते हैं कि विदेशी ढांचे पर आधारित शिक्षा प्रणाली भारतीय बच्चों की सृजनात्मकता, रुचि और आत्मा को नष्ट कर रही है।
मुख्य बिंदु:
- शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री पाना या नौकरी करना नहीं होना चाहिए, बल्कि वह बच्चों में ज्ञान, संवेदना और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देनी चाहिए।
- ब्रिटिश शासनकाल की शिक्षा व्यवस्था ने भारत की मूल संस्कृति और सोच को दबा दिया है।
- विद्यालयों में बच्चों को रटंत प्रणाली में बाँध दिया गया है, जिससे उनकी स्वतंत्र सोच और प्रतिभा कुंठित हो जाती है।
- लेखक ने शिक्षा में प्राकृतिकता, आत्मीयता और भारतीयता की आवश्यकता पर बल दिया है।
- शांतिनिकेतन जैसे प्रयोगों से यह दिखाया गया कि शिक्षा मुक्त वातावरण में दी जाए तो बच्चा बेहतर सीखता है।
🔸 शिक्षा में लेखक का संदेश:
लेखक का मानना है कि शिक्षा में हेरफेर का मतलब केवल पाठ्यक्रम बदलना नहीं, बल्कि पूरे दृष्टिकोण को बदलना है। शिक्षा को बच्चों के आंतरिक विकास, सृजनात्मक क्षमता और नैतिक मूल्यों को बढ़ाने वाली बनाना चाहिए।
उपयोगी जानकारी:
- यह अध्याय छात्रों को सोचने, समझने और भारतीय शिक्षा की जड़ों की ओर लौटने का संदेश देता है।
- यह शिक्षा व्यवस्था की आलोचना के साथ-साथ समाधान भी प्रस्तुत करता है।
कक्षा 9 हिंदी अध्याय 12 “शिक्षा में हेर-फेर” प्रश्न उत्तर :-
1. बच्चों के मन की वृद्धि के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर:
बच्चों के मन की वृद्धि के लिए स्वतंत्रता, आनंद, खेल और अनुभव आधारित शिक्षा आवश्यक है। उन्हें ऐसा वातावरण मिलना चाहिए जहाँ वे अपनी कल्पनाशक्ति और सोचने की शक्ति को विकसित कर सकें।
2. आयु बढ़ने पर भी बुद्धि की दृष्टि में वह सदा बालक ही रहेगा। कैसे?
उत्तर:
यदि शिक्षा केवल रटंत विद्या तक सीमित रहे और बच्चे को सोचने, समझने और प्रश्न पूछने की स्वतंत्रता न मिले, तो उसकी बुद्धि का विकास नहीं होता। ऐसे में वह चाहे जितना बड़ा हो जाए, बुद्धि से बालक ही बना रहता है।
3. बच्चों के हाथ में यदि कोई मनोरंजन की पुस्तक दिखाई पड़ी तो वह फौरन क्यों छीन ली जाती है? इसका क्या परिणाम होता है?
उत्तर:
शिक्षकों और अभिभावकों को लगता है कि मनोरंजन की पुस्तकें अनुशासन और पढ़ाई में बाधक हैं। इसलिए वे उन्हें तुरंत छीन लेते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि बच्चों की रुचि और स्वाभाविक जिज्ञासा नष्ट हो जाती है, और वे पढ़ाई से डरने लगते हैं।
4. “हमारी शिक्षा में बाल्यकाल से ही आनंद का स्थान नहीं होता।” आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?
उत्तर:
इसका कारण यह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में अनुशासन, अंक, और पाठ्यक्रम की दौड़ को ही महत्व दिया जाता है। बच्चों को मनोरंजन, रचनात्मकता और स्वतंत्र विचार के लिए कोई स्थान नहीं मिलता, जिससे शिक्षा बोझ बन जाती है।
5. हमारे बच्चे जब विदेशी भाषा पढ़ते हैं तब उनके मन में कोई स्मृति जागृत क्यों नहीं होती?
उत्तर:
क्योंकि विदेशी भाषा उनके मन, हृदय और परिवेश से जुड़ी नहीं होती। उनके अनुभव और भावनाएँ उस भाषा से मेल नहीं खातीं, इसलिए पढ़ाई याद नहीं रहती और भावनात्मक जुड़ाव नहीं बन पाता।
6. अंग्रेजी भाषा और हमारी हिंदी में सामंजस्य नहीं होने के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
इन दोनों भाषाओं की संरचना, सोचने का तरीका और संस्कृति अलग हैं। अंग्रेजी में अभिव्यक्ति का ढंग अलग है जबकि हिंदी भाव की भाषा है। इसी कारण दोनों में स्वाभाविक मेल नहीं हो पाता।
7. लेखक के अनुसार प्रकृति के स्वराज्य में पहुँचने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर:
प्राकृतिक स्वराज्य में पहुँचने के लिए मन की स्वतंत्रता, आत्मीयता और सहज अनुभव आवश्यक हैं। जब बच्चे को खुले वातावरण में सीखने का अवसर मिलता है, तभी वह प्रकृति के निकट पहुँच पाता है।
8. जीवन यात्रा संपन्न करने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार जीवन यात्रा के लिए चिंताशक्ति (विचार करने की शक्ति) और कल्पनाशक्ति दोनों का होना अत्यंत आवश्यक है। ये दोनों ही शिक्षा के सही उद्देश्य को पूरा करती हैं।
9. रीतिमय शिक्षा का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
रीतिमय शिक्षा का अर्थ है ऐसी शिक्षा जो परंपरागत ढर्रे पर चलती है, जिसमें नवाचार, अनुभव या आनंद की कोई जगह नहीं होती। यह शिक्षा यांत्रिक और रटने वाली होती है।
10. शिक्षा और जीवन एक-दूसरे का परिहास किन परिस्थितियों में करते हैं?
उत्तर:
जब शिक्षा जीवन से अलग, कृत्रिम और व्यावहारिकता से रहित हो जाती है, तब शिक्षा और जीवन एक-दूसरे का मज़ाक बन जाते हैं। शिक्षा केवल डिग्री तक सीमित हो जाती है, जबकि जीवन की चुनौतियाँ अलग दिशा में होती हैं।
11. मातृभाषा के प्रति अवज्ञा की भावना किस तरह के लोगों के मन में उत्पन्न होती है?
उत्तर:
ऐसे लोग जो विदेशी भाषा को ही ज्ञान का माध्यम मानते हैं और अपनी संस्कृति व भाषा को हीन समझते हैं, उनके मन में मातृभाषा के प्रति अवज्ञा और लज्जा उत्पन्न होती है।
12. आशय स्पष्ट करें:
उत्तर:
(क) “हम विधाता से यही वर माँगते हैं – हमें क्षुधा के साथ अन्न, शीत के साथ वस्त्र, भाव के साथ भाषा और शिक्षा के साथ जीवन प्राप्त करने दो।”
इसका आशय है कि जैसे भूख के साथ अन्न, सर्दी के साथ कपड़े, वैसे ही भाव के साथ भाषा और शिक्षा के साथ जीवन का मेल ज़रूरी है। शिक्षा सिर्फ पढ़ाई नहीं, बल्कि जीवन से जुड़ी होनी चाहिए।
(ख) “चिंताशक्ति और कल्पना शक्ति दोनों जीवन यात्रा संपन्न करने के लिए अत्यावश्यक हैं।”
इसका आशय है कि इंसान को सिर्फ रटना नहीं, बल्कि उसे सोचना और कल्पना करना भी आना चाहिए। ये दोनों शक्तियाँ उसे जीवन की चुनौतियों से लड़ने में मदद करती हैं।
13. वर्तमान शिक्षा प्रणाली का स्वाभाविक परिणाम क्या है?
उत्तर:
वर्तमान शिक्षा प्रणाली का परिणाम है कि विद्यार्थी यांत्रिक, रटंत और बिना सोच-विचार के बड़े हो जाते हैं। उनमें सृजनात्मकता और आत्मनिर्भरता का अभाव रहता है।
14. अंग्रेजी हमारे लिए काम-काज की भाषा है, भाव की भाषा नहीं। कैसे?
उत्तर:
अंग्रेजी भाषा हमारी भावनाओं, संस्कृति और सोच से मेल नहीं खाती। हम इससे कार्यालय और नौकरी के काम तो कर सकते हैं, लेकिन अपने दिल की बात नहीं कह सकते।
15. आज की शिक्षा मानसिक शक्ति का हास कर रही है। कैसे? इससे छुटकारे के लिए आप किस तरह की शिक्षा को बढ़ावा देना चाहेंगे?
उत्तर:
आज की शिक्षा में केवल रटंत और परीक्षा केंद्रित पद्धति है, जिससे विचारशीलता और कल्पनाशक्ति घट रही है। इससे छुटकारा पाने के लिए हमें ऐसी शिक्षा देनी चाहिए जो अनुभव आधारित, रचनात्मक, मातृभाषा में और जीवन से जुड़ी हो।
पाठ के आस-पास :-
1. रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने निबंध ‘शिक्षा में हेर फेर’ में भारतीय शिक्षा पद्धति के प्रति असंतोष जाहिर किया है। क्या आपको ऐसा लगता है कि वह असंतोषजनक है? यदि हाँ, तो क्यों?
उत्तर:
हाँ, लेखक का असंतोष बिल्कुल जायज है।
उन्होंने बताया है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली बच्चों को रचनात्मक और स्वतंत्र सोच के बजाय रटने और अंक लाने तक सीमित कर देती है। इसमें न तो मातृभाषा का उचित स्थान है, न ही बच्चों के मनोरंजन, भावनाओं और अनुभवों का। लेखक का मानना है कि शिक्षा जीवन से जुड़ी होनी चाहिए, केवल किताबों तक सीमित नहीं। इसलिए उनका असंतोष वास्तविक और आवश्यक सुधार की माँग करता है।
2. रवींद्रनाथ ठाकुर भारतवर्ष के पहले साहित्यकार हैं जिन्हें उनकी कृति ‘गीतांजलि’ पर विश्व प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार मिला। एक साहित्यकार के रूप में उनके व्यक्तित्व पर टिप्पणी करें।
उत्तर:
रवींद्रनाथ ठाकुर बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। वे कवि, लेखक, निबंधकार, संगीतकार, शिक्षाविद् और दार्शनिक थे।
उनकी रचनाओं में मानवता, प्रेम, प्रकृति, भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का गहरा संदेश मिलता है।
उन्होंने शिक्षा को केवल ज्ञान नहीं, बल्कि आत्मा का विकास माना। उनके साहित्य में सौंदर्यबोध, सादगी और संवेदना की झलक मिलती है।
‘गीतांजलि’ जैसी रचना से उन्होंने भारतीय साहित्य को विश्वस्तरीय पहचान दिलाई।
3. शिक्षा से संबंधित उनके अन्य निबंधों को एकत्र करें एवं पढ़ें।
उत्तर:
रवींद्रनाथ ठाकुर के शिक्षा संबंधी अन्य प्रमुख निबंध इस प्रकार हैं:
- शिक्षा का स्वदेशीकरण
- शिक्षा और जीवन
- मूल्य आधारित शिक्षा
- शिक्षा और स्वतंत्रता
- विश्वभारती के उद्देश्य
इन निबंधों में ठाकुर ने मातृभाषा, स्वतंत्रता, आनंद और जीवन से जुड़ी शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया है।
4. अपने विद्यालय के पुस्तकालय से रवींद्रनाथ के निबंधों की पुस्तक उपलब्ध करें और पढ़ते हुए विचार करें कि वे किस तरह के निबंधकार हैं, उनके निबंधों के विषय क्या हैं?
उत्तर:
रवींद्रनाथ ठाकुर एक गंभीर, चिंतनशील और मानवीय दृष्टिकोण वाले निबंधकार थे। उनके निबंधों में शिक्षा, समाज, संस्कृति, राष्ट्रवाद, आत्मा, प्रकृति, मानवता और भाषा जैसे विषय मिलते हैं।
वे अपने निबंधों में गंभीर विषयों को भी सहज, सरल और संवेदनशील भाषा में प्रस्तुत करते हैं।
उनकी शैली में दार्शनिक दृष्टिकोण और काव्यात्मक भावनाएँ भी होती हैं, जो पाठक को सोचने और आत्मविश्लेषण करने के लिए प्रेरित करती हैं।
भाषा की बात :-
1. संधि-विच्छेद करें –
शब्द | संधि-विच्छेद |
अत्यावश्यक | अत्य + आवश्यक |
यथेष्ट | यथा + इष्ट |
स्वाधीनता | स्व + अधीनता |
उज्ज्वल | उद् + ज्वल |
सर्वांग | सर्व + अंग |
नीरस | नि + रस |
अत्यंत | अत् + अंत |
निरानंद | नि + आनन्द |
बाल्यावस्था | बाल्य + अवस्था |
2. निम्नलिखित शब्दों के विलोम रूप लिखें –
शब्द | विलोम शब्द |
धर्म | अधर्म |
कड़वी | मीठी |
आवश्यक | अनावश्यक |
हास | विकास |
जीवन | मृत्यु |
उपयोग | दुरुपयोग |
नवीन | पुरातन / पुराना |
मानवीय | अमानवीय |
दुर्भाग्य | सौभाग्य |
सबल | निर्बल |
शाम | सुबह |
सरसता | नीरसता |
3. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें –
शब्द | पर्यायवाची शब्द |
ईश्वर | भगवान, प्रभु, परमात्मा |
पृथ्वी | धरती, भूमि, वसुंधरा |
आँख | नेत्र, नयन, लोचन |
4. निम्नलिखित शब्दों का समास विग्रह करें एवं उसके प्रकार बताएँ –
शब्द | समास विग्रह | समास का प्रकार |
सत्यराज्य | सत्य का राज्य | तत्पुरुष समास |
वयोविकास | वय का विकास | तत्पुरुष समास |
मातृभाषा | माता की भाषा | तत्पुरुष समास |
5. पठित पाठ से दो अकर्मक और दो सकर्मक क्रिया चुनें –
अकर्मक क्रियाएँ:
- बैठा
- चला
सकर्मक क्रियाएँ:
- पढ़ता है
- समझते हैं
(टिप्पणी: ये क्रियाएँ पाठ के भाव और उदाहरणों से संबंधित हैं, जो बच्चों की शिक्षा और सोच को दर्शाती हैं।)