पाठ्यपुस्तक के अध्याय 5 “भारतीय चित्रपटः मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक” के लेखक अमृतलाल नागर हैं। इस निबंध में उन्होंने भारतीय सिनेमा के विकास की यात्रा को सरल और रोचक भाषा में प्रस्तुत किया है।

भारतीय चित्रपटः मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक – सारांशः
19वीं और 20वीं शताब्दी में विज्ञान ने अनेक चमत्कारी आविष्कार किए, जिनमें सिनेमा एक प्रमुख आविष्कार था। भारत में पहली बार 6 जुलाई 1896 को मुंबई में सिनेमा का प्रदर्शन हुआ, जिसमें चलती-फिरती तस्वीरें देखकर लोग अचंभित हो गए। शुरुआत में ये फिल्में मूक होती थीं और इनमें कोई कहानी नहीं होती थी; केवल जीवन के साधारण दृश्यों को दिखाया जाता था, जैसे समुद्र स्नान या मजदूरों का काम।
भारतीय सिनेमा के प्रारंभिक दौर में सावे दादा का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने ल्युमीयेर ब्रदर्स के प्रोजेक्टर और फोटो डेवलप करने की मशीनें खरीदकर भारत में फिल्म निर्माण की नींव रखी। उन्होंने भारतीय नेताओं जैसे आर. पी. परांजपे, लोकमान्य तिलक और गोखले पर डाक्यूमेंट्री फिल्में बनाई।
हालांकि, भारतीय फिल्म उद्योग के जनक दादा साहब फाल्के माने जाते हैं। उन्होंने 1913 में पहली फीचर फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाई, जिसमें सभी पात्र पुरुष थे। इससे पहले ‘भक्त पुंडलीक’ नामक एक फीचर फिल्म बनी थी, लेकिन ‘राजा हरिश्चंद्र’ को ही भारतीय सिनेमा की पहली फीचर फिल्म माना जाता है। दादा साहब फाल्के ने कई फीचर फिल्में बनाई और भारतीय फिल्म उद्योग को एक मजबूत आधार प्रदान किया। उनके योगदान के सम्मान में भारत सरकार ने सर्वोच्च फिल्म पुरस्कार ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ के रूप में स्थापित किया है।
1930 में भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ बनी, जिससे भारतीय सिनेमा में एक नया युग शुरू हुआ। इस निबंध के माध्यम से लेखक ने भारतीय सिनेमा की विकास यात्रा को दर्शाया है, जो छात्रों को हमारी सांस्कृतिक विरासत और फिल्म उद्योग के इतिहास से परिचित कराता है।
भारतीय चित्रपटः मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक | प्रश्नोत्तर | कक्षा- 9 | बिहार बोर्ड | पाठ- 5
- उन्नीसवीं और बीसवीं शती ने दुनिया को कई करिश्मे दिखाए। लेखक ने किस करिश्मे का वर्णन विस्तार से किया है?
➡लेखक ने सिनेमा को सबसे बड़ा करिश्मा बताया है। उन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे यह आविष्कार लोगों को हैरान कर देने वाला था और जीवन का मनोरंजन भरा साधन बन गया। - भारतीय चित्रपट में मूक से सवाक् फिल्मों तक के इतिहास को रेखांकित करते हुए दादा साहब फालके का महत्त्व बताइए।
➡दादा साहब फालके ने भारत की पहली फीचर फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाई। उन्होंने कई मूक फिल्में बनाई और भारतीय सिनेमा की नींव रखी। उनके प्रयासों से फिल्म उद्योग को पहचान मिली, इसलिए उन्हें भारतीय सिनेमा का जनक कहा जाता है। - सावे दादा कौन थे? भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को पाठ के माध्यम से समझाइए।
➡सावे दादा पहले भारतीय थे जिन्होंने खुद से कैमरा चलाना और फिल्म बनाना सीखा। उन्होंने लोकमान्य तिलक, गोखले आदि पर डाक्यूमेंट्री बनाई और लोगों को भारतीय विषयों पर फिल्म दिखाई। - लेखक ने सावे दादा की तुलना में दादा साहब फालके को क्यों भारतीय सिनेमा का जनक माना? स्पष्ट कीजिए।
➡क्योंकि सावे दादा ने सिर्फ कुछ डॉक्युमेंट्री बनाई, लेकिन दादा साहब फालके ने पूरी कहानी वाली फिल्में बनाई और फिल्म फल्म उद्योग को आकार दिया। उन्होंने नियमित फिल्में बनाई, इसीलिए उन्हें जनक कहा गया। - भारतीय सिनेमा के विकास में पश्चिमी तकनीक के महत्त्व को रेखांकित कीजिए।
➡सिनेमा की शुरुआत पश्चिमी देशों की तकनीक से हुई। भारत में कैमरा, प्रोजेक्टर और फिल्म बनाने की मशीनें बाहर से आईं। इन्हीं तकनीकों से भारतीय सिनेमा की नींव रखी गई। - अपने शुरुआती दिनों में सिनेमा आज की तरह किसी कहानी पर आधारित नहीं होते थे, क्यों?
➡शुरू में लोग केवल चलती तस्वीरें देखना चाहते थे। तकनीक नई थी, इसलिए फिल्में सिर्फ दैनिक जीवन के दृश्य दिखाती थीं, जैसे चलती ट्रेन या लोगों का स्नान। - भारत में पहली बार सिनेमा कब और कहाँ दिखाया गया?
➡जुलाई 1896 को बम्बई (मुंबई) में पहली बार सिनेमा दिखाया गया। - सिनेमा दिखलाने के लिए अखबारों में क्या विज्ञापन निकला? इस विज्ञापन का बम्बई की जनता पर क्या असर हुआ?
➡विज्ञापन में लिखा गया था – “चलती-फिरती तस्वीरें”। यह शब्द लोगों को बहुत रोमांचक लगा और वे बड़ी संख्या में सिनेमा देखने पहुंचे। - 1897 में पहली बार बम्बई की जनता को रुपहले पर्दे पर कुछ भारतीय दृश्य देखने को मिले। उन दृश्यों को लिखें।
➡लोगों ने रुपहले पर्दे पर देखा –- बम्बई का समुद्र स्नान
- घूमते हुए बैलगाड़े
- मजदूरों का काम
- हिंदू मुस्लिम त्योहारों की झलकियां
- कलकत्ते में स्टार थियेटर की स्थापना किसने की?
➡जे. एफ. मादन ने कलकत्ता में स्टार थियेटर की स्थापना की। - भारत में फिल्म उद्योग किस तरह स्थापित दिया? हुआ? इसकी स्थापना में किन-किन व्यक्तियों ने योगदान दिया?
➡फिल्म उद्योग कैमरे और तकनीक के आने के बाद बना। इसमें सावे दादा, दादा साहब फालके, जे. एफ. मादन आदि लोगों का योगदान था। - पहली फीचर फिल्म कौन थी?
➡भारत की प पहली फीचर फिल्म थी – ‘राजा हरिश्चंद्र’ (1913), जिसे दादा साहब फालके ने बनाया था। - भारत की पहली बॉक्स ऑफिस हिट फिल्म किसे कहा जाता है?
➡भारत की पहली बॉक्स ऑफिस हिट फिल्म थी ‘आलम आरा’ (1931), जो पहली बोलती फिल्म भी थी। - जे० एफ. मादन का भारतीय फिल्म के विकास में योगदान रेखांकित करें।
➡जे. एफ. मादन ने कलकत्ता में स्टार थियेटर खोला और कई मूक फिल्में बनाईं। उन्होंने सिनेमा को जन-जन तक पहुँचाया और व्यापारिक रूप दिया। - शुरुआती दौर की फिल्म को लोग क्या कहते थे?
➡शुरुआती दौर की फिल्म को लोग “चलती-फिरती तस्वीरें” कहते थे। उस समय लोगों के लिए यह एक नया चमत्कार था, इसलिए इसे इस नाम से पुकारा जाता था। - ‘राजा हरिश्चंद्र’ फिल्म में स्त्रियों का पार्ट भी पुरुषों ने ही किया था। क्यों?
➡उस समय समाज में औरतों का फिल्मों में काम करना अशोभनीय माना जाता था। इसलिए ‘राजा हरिश्चंद्र’ में सभी स्त्री पात्रों की भूमिका पुरुष कलाकारों ने ही निभाई।
✦ पाठ के आस-पासः
- ‘दादा साहब फालके’ के बारे में जानकारी प्राप्त करें।
➡दादा साहब फालके का पूरा नाम धुंडीराज गोविंद फालके था। वे भारतीय सिनेमा के जनक कहे जाते हैं। उन्होंने 1913 में पहली मूक फीचर फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाई। उन्होंने भारतीय सिनेमा की नींव रखी। उनके सिनेमा सम्मान में भारत सरकार ने ‘दादा साहब फालके पुरस्कार’ की शुरुआत की। - प्रारंभिक दौर की फिल्मों की एक क्रमवार सूची बनाएँ।
➡- राजा हरिश्चंद्र (1913) दादा साहब फालके
- भक्त पुंडलीक (1912) पहले प्रयास की फिल्म
- मोहिनी भस्मासुर (1913)
- सावित्री सत्यवान
- कालिय मर्दन (1919)
- राजा हरिश्चंद्र की कहानी अपने शिक्षक से से पूछें।
➡संकेतः राजा हरिश्चंद्र सत्यवादी राजा थे। उन्होंने सच्चाई की खातिर अपना राज्य, परिवार और सब कुछ त्याग दिया। अंत में, सत्य की जीत हुई। - आरंभिक दौर की फिल्मों को बनाने में क्या-क्या कठिनाइयाँ रही होंगी? आप क्या सोचते हैं?
- उस समय तकनीकी सुविधाएँ नहीं थीं।
- कैमरा और लाइटिंग अच्छे नहीं थे।
- कलाकार मिलना मुश्किल था, खासकर महिलाएँ अभिनय नहीं करती थीं।
- पैसे की कमी भी बड़ी समस्या थी।
- आरंभिक दौर की फिल्मों और आधुनिक दौर की फिल्मों में क्या अंतर पाते हैं? लिखें।
विषय | आरंभिक फिल्में | आधुनिक फिल्में |
तकनीक | मूक, ब्लैक एंड व्हाइट | रंगीन, डिजिटल, VFX |
आवाज | कोई आवाज नहीं | डायलॉग, संगीत |
अभिनय | शारीरिक भावों पर आधारित | बोलचाल व भावों का मिश्रण |
महिला पात्र | पुरुष निभाते थे | महिलाएँ भी अभिनय करती हैं |
6. दादा साहब फालके पुरस्कार अब तक किन लोगों को मिला है? क्रमवार सूची बनाएँ।
➡इस पुरस्कार की शुरुआत 1969 में हुई। कुछ प्रमुख विजेताः
• 1969 – देविका रानी
• 1971 – पृथ्वीराज कपूर
• 1989 – लता मंगेशकर
• 1992 – भूपेन हजारिका
• 2018 – अमिताभ बच्चन
• 2021 – रजनीकांत
✦ भाषा की बातः
- मुहावरों के अर्थ लिखिए
- दाँतों तले उंगली दबाना – हैरान हो जाना
- श्रीगणेश होना – किसी काम की शुरुआत होना
- संधि विच्छेद करें
- संगम = सं + गम
- विश्वविद्यालय = विश्व + विद्यालय
- स्वागतोत्सव = स्वागत + उत्सव
- हरिश्चंद्र = हरि + इष + चंद्र
- लिंग स्पष्ट करें (वाक्य प्रयोग द्वारा)
- टेलीग्राम – मुझे एक टेलीग्राम मिला। (पुल्लिंग)
- आँख – मेरी आँख दुख रही है। (स्त्रीलिंग)
- सिनेमा – हमने सिनेमा देखा। (पुल्लिंग)
- टिकट – मुझे टिकट चाहिए। (पुल्लिंग)
- होटल – वह होटल बड़ा है। (पुल्लिंग)
- फिल्म – यह फिल्म रोचक है। (स्त्रीलिंग)
- व्यवसाय – उसका व्यवसाय अच्छा चल रहा है। (पुल्लिंग)
- प्रत्यय बताएँ
- बंबड्या = बंबई + इया
- स्वर्गीय = स्वर्ग + ईय
- अच्छाई = अच्छा + ई
- व्यक्तित्व = व्यक्ति + त्व
- चश्माधारी = चश्मा + धारी
- उपसर्ग बताएँ
- विज्ञापन = वि + ज्ञान + पन
- प्रचारक = प्र + चारक
- विनायक = वि + नायक
- सुप्रसिद्ध = सु + प्रसिद्ध
- सुख्यात = सु + ख्यात
- पद चुनें (निर्देश अनुसार):
(क) से कारक चिह्न
(ख) में कारक चिह्न
(ग) छोटी-मोटी – विशेषण
(घ) मुझे – सर्वनाम - समानार्थी शब्द लिखें
- बाजार = मंडी, हाट
- करिश्मा = चमत्कार, अजूबा
- चमत्कार = करिश्मा, अद्भुत कार्य
- आविष्कार = खोज, निर्माण
- जनता = लोग, आमजन
- व्यवसाय = व्यापार, धंधा
- खरीदना = लेना , क्रय करना
- प्रारंभ = आरंभ, शुरूआत